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Dec 18, 2012

Union Home Ministry, Delhi government: Set up fast-track courts to hear rape/ gangrape cases

दिल्ली में चलती बस में 23 साल की लड़की के साथ बलात्कार के साथ दरिंदगी से उसकी हत्या का जो प्रयास हुआ,  वो मुझे बहुत दुःख, गुस्से और  हताशा से भर गया है, सुषमा स्वराज की तरह ये नहीं कहूंगी की वो लड़की जियेगी तो जीती जागती  लाश बन जायेगी, मेरी आशा है कि  वो लड़की जीवित  बचे, सकुशल रहे और अभी अपना लम्बा अर्थपूर्ण जीवन जिये.  बलात्कार एक एक्सीडेंट ही है, इससे उबरने की शक्ति वो लड़की जुटा सके...

सिर्फ दिल्ली ही नहीं पूरे देश में हर जगह बच्चों और औरतों पर हमले बढ़ रहे हैं, गोपाल कांडा  की वजह से एक इसी उम्र की लड़की की आत्महत्या का मामला हो, या सोनी सोरी की हिरासत में हालत, या बारह साल से धरने पर बैठी इरोम शर्मीला का मामला, ये सब एक ही कहानी के हिस्से हैं, जगह जगह से फटे कोलाज के टुकड़े हैं .   एक मित्र से बातचीत हुयी कि  ठीक दिल्ली के आस-पास के राज्य हरियाणा, राजस्थान आदि में इतनी बड़ी संख्या में मादा भ्रूण हत्याएं  (अमर्त्य सेन इसे नेतेलिटी कहते हैं, ख़ास हिन्दुस्तानी मामला) हुयी हैं,   कहीं लड़कियां बची ही नहीं है . दिल्ली में बलात्कार,  से लेकर छेड़छाड़ की घटनाओं  में इजाफा भी भारी संख्या में हुयी 'नेतेलिटी' का इफेक्ट है, जो भी है, स्त्री के लिए जीवित रहना, सम्मान के साथ रहना लगातार असंभव हुआ जाता है ..

हम सब मिलकर किसी तरह इस तरह का माहौल बना सके इस तरह की घटना फिर न हो, या अपवाद भर रह जाय— चाहे जिस भी तरह से, कुछ दूरगामी प्रयोग, कुछ जल्दबाजी की सावधानियाँ, कानून व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त और जबाबदेह बनाकर, अपनी सरकारों और राजनितिक पार्टियों पर जनमत का दबाव बनकर, जैसे भी हो....

 बलात्कार और योन हिंसा के मामले में अगर जल्द कड़ी सजा नहीं होती तो , एक के बाद एक ऎसी घटनाएं बढ़ती हैं, देश की अमूमन सभी लड़कियों, उनके अभिभावकों का आत्म विश्वास कम होता है, ले देकर इतने संघर्ष के बाद आज जो जरा से शिक्षा और रोजगार के मौके लड़कियों के हाथ लगे हैं, वो भी छीन जायेंगे। किसी की सरकारी नौकरी का विवाद हो या जायजाद का झंझट या फिर कुछ चोरी आदि, ये सब किसी एक परिवार को ही प्रभावित करते हैं, ये अपेक्षाकृत इन्तजार कर सकते हैं, खासकर ऎसी हालत में जब अदालतों की संख्या कम हो ..  अच्छा हो की हर तरह के केस में जल्दी न्याय मिले, लेकिन वैसा संभव न हो, उसमें अगले बीस या 50 साल लग जाए, तब कुछ मामलों को प्रायरिटी देनी पड़ेगी ...

फिलहाल ये पिटीशन का लिंक है ,  इस पर हस्ताक्षर हम कर ही सकते हैं ...

http://www.change.org/petitions/union-home-ministry-delhi-government-set-up-fast-track-courts-to-hear-rape-gangrape-cases?utm_campaign=share_button_action_box&utm_medium=facebook&utm_source=share_petition&utm_term=36841248

Dec 14, 2012

पारा पारा होता मन—'क्रेटर लेक'


 "पातालस्वामी लाओ, जब-तब एक भूमिगत सुरंग के रस्ते लाओ-येना पर्वत (माउंट मेज़मा ) की चोटी पर, दुनिया देखने पहुँचता. एक दिन यहीं से  क्लामथ कबीले के मुखिया की सुन्दरी बेटी लोहा को उसने देखा और मोहित हो गया. लोहा ने बदसूरत लाओ को खरी -खोटी सुनायी,  तो उसने तिलमिलाकर क्लामथ कबीले को नष्ट करने की मंशा से आग और पत्थरों की बारिश शुरू कर दी.  विपत्ति देख क्लाम्थ के मुखिया ने आकाशस्वामी 'स्केल' से मदद मांगी.  स्केल 'माउंट  मेज़मा ' के ठीक सामने  'माउंट शास्ता' पर उतरकर लाओ का मुकाबिला करने लगा.  दोनों एक दुसरे पर आग के गोलों और पत्थरों से हमला करने लगे,  धीरे-धीरे आकाश, पृथ्वी और पातल की सभी आत्मायें  इस युद्ध में शामिल हो गयीं. स्केल और लाओ की गर्जना से धरती कांपने लगी, पहाड़ पिघलकर आग की  नदी बन गये. आग, पत्थरों, गर्द की बारिश के बीच पूरे इलाके में कई-कई दिनों तक अँधेरा छा गया.  बचाव का कोई रास्ता न देख कबीले के दो पुजारियों ने अपनी बलि दी, जिससे स्केल को ताकत मिली और उसने माउंट मेज़मा को हमेशा के लिए ध्वस्त कर दिया. माउंट मेज़मा के टूटने से जो विशाल गड्ढ़ा (क्रेटर) बना, स्केल ने वहाँ  लाओ को ले जाकर दफ़ना दिया, और फिर उस काले गड्ढ़े  को साफ़, नीले पानी से ढक दिया".
 ...................'क्रेटर लेक' बनने की 'क्लामथ कबीले' की दन्तकथा

नेटिव अमेरिकन  'क्लामथ कबीले' के मिथक में बसे पुरखे मालूम नहीं कि 'विज़न क्वेस्ट' के दरमियाँ पृथ्वी, आकाश, पाताल की आत्माओं से बातचीत करते रहे कि नहीं,  सचमुच कोई 'लोहा' थी कि  नहीं, कि कोई चोट खाया दैव 'लाओ' ही,  जिनकी वजह से माउंट मेज़मा ढह गया.  लेकिन ज्वालामुखी के मलबे के नीचे मिले अर्टीफेक्ट्स गवाही देतें हैं कि सचमुच क्लामथ कबीले के पुरखों ने 7700 वर्ष पहले ज्वालामुखी विस्फोटों, और 12,000 फीट ऊँचे माउंट मेज़मा को तहस-नहस होते देखा होगा.  ये भी सच है कि माउंट मेज़मा पर ज्वालामुखी फटने के बाद बने विशालकाय गड्ढ़े के भीतर सदियों की बारिश और ग्लेशियल जल के इक्ठ्ठा होने से क्रेटर लेक बनी है.  ये  अमेरिका की सबसे गहरी (1943 फुट) और दुनिया की तीसरी सबसे गहरी झील है.  शायद सबसे पारदर्शी झील भी, जिसके भीतर बहुत दूर तक झाँका जा सकता है.  इसका पानी ठंडा और बहुत मीठा है, गहरा नीला रंग यकीन से परे, जैसे कोई एनिमेटेड यथार्थ ...

 झीलें, नदियाँ और पहाड़,  मेरे मन का अन्तरंग हिस्सा हैं. नदियों की उत्पत्ति, उनके भूमिगत हो जाने, सूख जाने, पहाड़ों के बनने-बिगड़ने और ढह जाने के मिथकों ने मेरे अवचेतन की जमीन बुनी है.  घर की याद में झील, नदी और पहाड़ की याद बहुत इंटेंसिटी के साथ रहती हैं.  चालीस वर्ष के बाद अब आगे नौजवानी के समय की तरह खुला पसरा मैदान नहीं है. कहीं से कहीं पहुँच जाने की वैसी बैचैनी और भागने की वैसी जान भी नहीं है. अब आगे जाना पीछे को अपने साथ सहेज कर ले जाना है, नैनी झील जैसा प्रेम मुझे इथाका की 'बीबी लेक' और 'कायुगा लेक' से भी है.  मेरे घर के बगल से बहती विलामत नदी भी भागीरथी की कोई बिछड़ी बेटी ही लगती है,  वैसा ही मोह उसके लिए भी मेरे भीतर जागता है.   हरसी हैदर यंग जिस तरह 200 साल पहले, नैथाना गाँव और उत्तराखंड के गाँव-गाँव, नदी, पहाड़ों के बीच अपने ही दिल की धड़कन सुन विस्मित होता होगा,  उसी तरह बीहड़ और रूरल नार्थ अमेरिकी लैंडस्केप के साथ मेरा अपनापा बनता है, देश और काल की सीमा आड़े नहीं आती, फट से इन नदियों, पहाड़ों, दरख्तों से मोह हो जाता है...

खुशकिस्मती से  ऑरेगन  में भी बहुत ढ़ेर सारी,  हर मील दो मील पर झीलें और नदियाँ है, जिन्हें देखकर मन खुश होता है. सितम्बर 2012 में एक मित्र परिवार के साथ, पांच घंटे की ड्राइव में हरियाली के बीच 10-12 झीलें, दो बड़े बाँध और ऑरेगन  के  3-4 छोटे कस्बों के बीच से गुजरने के बाद हम 'क्रेटर लेक नेशनल पार्क' पहुंचे.  क्रेटर लेक से मीलों तक फैली लाल जमीन, लावा पत्थर और ज्वालामुखी की राख के निशाँ अब तक हैं,  उसी के ऊपर उग आये कुछ सेजब्रश की झाड़ियाँ रास्ते में दिखती हैं,  झील को चारों तरफ से घेरे घने ऊँचे दरख़्त भी दीखते हैं.  जीवन की तरह कोई भी विनाश, कैसी भी प्रलय शाश्वत नही ... 

सड़क से झील को देखना, याने नीले रंग के पारे से भरे किसी कटोरे की परिधि पर खड़ा होना है.  एक संकरी पगडंडी सड़क से तकरीबन 760 फुट नीचे झील की सतह तक पहुंचती है.  सांप की तरह बल खाती पगडंडी से 10 कि.मी. लम्बी और 8 कि.मी. चौड़ी, नीली झील कई एंगल से दिखती, नए भ्रम सिरजती है.  'क्रेटर लेक के भीतर पानी का कोई दूसरा स्रोत नहीं है, और न ही इस झील से बाहर किसी नदी-नहर के जरिये पानी की निकासी होती है,  गरमी में जो पानी वाष्प बनकर उड़ जाता है, उसकी भरपायी बारिश और बर्फ से हो जाती है. इस चक्र के चलते ऐसा अनुमान है कि  लेक का सारा पानी हर 250 वर्षो में रिप्लेस हो जाता है.  इस तरह किसी भी बाहरी प्रदूषण से मुक्त दुनिया की सबसे साफ़ और शुद्ध पानी की ये झील है. इस पानी के बारे में कई किवदंतियां है, जैसे बद्रीनाथ के कुंड के जल के बारे में,  गंगाजल के बारे में. किवदंतियों से अलग एक कम्पनी इसके पानी को स्टेमसेल्स की रिसर्च में लगी कुछ लेब्स में बेचती है.  त्वचा पर पानी की छुअन, इस मीठे पानी का स्वाद अपनी याद में संजोती हूँ, एक बोतल में पानी भी भर लायी, इसी तरह से शायद लोग गंगा का पानी लाते रहे होंगे ...

झील के तल में अब तक एक सोया हुआ ज्वालामुखी है, बीच-बीच में ज्वालामुखी के छोटे विस्फोट झील के भीतर हुए हैं, दो छोटे टापू 'रेड कोन' और 'विज़र्ड आईलेंड' बने है.  नेटिव अमेरिकन क्लामथ ट्राईब के लोग अब भी एक सालाना उत्सव के मौके पर पूज्य भाव से इस झील तक आते ही हैं. कौन जानता है कि उनकी कथा का लाओ शायद करवट बदलता हो,  या फिर दुनिया देखने की उसकी हसरत ने ही शायद इन टापुओं को जन्म दिया हो ......