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Apr 19, 2010

संस्थागत पूंजीवादी लूट खसौट

मुझे अर्थशास्त्र में कोई रुची नहीं रही, न कभी समझ रही। फिर भी अब जबकि नाकामयाब अर्थ-नीतियों और अनगिनत घोटालों ने आम आदमी को कहीं का नहीं छोड़ा, और इनके परिणाम रोज़-रोज़ कुछ और हमें चपटें में लिए जातें है बिना हमारी अनुमति के, बिना रूचि-अरुचि के तो इस तरह आँख चुराना भी अब संभव नहीं बचा है। मुझे हमेशा से लगता रहा कि ये जो इतनी बड़ी मंदी की मार है, उसकी वजह क्या है? कहां गया आखिर पैसा? हवा में गुम तो नहीं ही हुआ होगा। हो सकता है पब्लिक डोमेन से निकल कर किसी निजी कौने में जमा हो गया हो, पर कपूर की तरह हवा नहीं ही हुआ होगा।
ये कुछ , और लेख है, लम्बे है, और अंगरेजी में ही है। शायद ये समझने में कुछ मदद करते है कि पैसा आखिर हवा हुआ तो कहां हुआ?

1 comment:

  1. धन्यवाद। हम इन लेखों को पढ़कर समझने का प्रयास करेंगे।

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